Lizard Farming India: आज हम आपको एक ऐसी खेती के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आपने शायद ही कभी सोचा होगा। चीन में बड़ी संख्या में किसान छिपकली की खेती कर रहे हैं और यह उनके लिए शानदार आय का मजबूत साधन बन चुकी है। छोटे से जीव से इतनी बड़ी कमाई होना किसी को भी हैरान कर सकता है, लेकिन यह सच है कि चीन में यह कारोबार बड़े पैमाने पर तेजी से बढ़ रहा है।
कैसे होती है छिपकली की वैज्ञानिक खेती
छिपकलियों को विशेष फार्म में पाला जाता है जहाँ तापमान और नमी को पूरी तरह नियंत्रित रखा जाता है। दक्षिण चीन के ग्वांगशी प्रांत सहित कई इलाकों में छिपकली पालन बहुत अधिक लोकप्रिय है। फार्म बिल्कुल सांप पालन केंद्रों की तरह व्यवस्थित होते हैं, जहाँ सफाई और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है।

प्रजनन और देखभाल का तरीका
मादा छिपकली अंडे देती है जिन्हें इनक्यूबेटर में सुरक्षित रखा जाता है। अंडों से निकलने वाले बच्चे छिपकलियों को अलग-अलग बाड़ों में पाला जाता है। इनके भोजन में छोटे कीड़े, टिड्डे और चींटियाँ शामिल होती हैं। छिपकलियाँ तेजी से बढ़ती हैं और कुछ ही महीनों में बाज़ार विक्रय योग्य हो जाती हैं।
बिक्री और मुनाफे की कहानी
जब छिपकलियाँ पूरी तरह बड़ी हो जाती हैं तो किसानों द्वारा उन्हें हाथों से उठाकर टोकरियों में रखा जाता है और स्थानीय बाजारों व रेस्टोरेंट्स में बेचा जाता है। चीन में छिपकली लोकप्रिय डिश बन चुकी है, जिस वजह से इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। कम खर्च, तेज़ प्रजनन और लगातार बाज़ार उपलब्धता के कारण यह किसानों को अच्छा मुनाफा दिला रही है।
भारत में छिपकली की खेती की स्थिति
भारत में इस तरह की खेती अभी आम नहीं है। कुछ क्षेत्रों में अनुसंधान और औषधीय उपयोग के लिए सीमित स्तर पर छिपकलियों का पालन किया जाता है। हालांकि, यहाँ सबसे बड़ी चुनौती वन्यजीव संरक्षण अधिनियम से जुड़ी है। भारत में कई छिपकली प्रजातियाँ संरक्षित हैं और बिना अनुमति इनके व्यापार पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसलिए यदि भविष्य में इसे व्यवसायिक रूप दिया जाए तो कानून और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए ही कदम उठाने होंगे।
भविष्य की संभावना
बढ़ती मांग और वैज्ञानिक तरीकों की उपलब्धता के साथ छिपकली पालन भारत में भी नई रोजगार संभावना बन सकता है। कम जगह, कम खर्च और उचित देखरेख के साथ यह पशुपालकों को अतिरिक्त आय का बेहतर विकल्प दे सकता है—बशर्ते यह कानूनी और पर्यावरणीय मानकों के भीतर किया जाए।








